भारतीय जीवनदर्शन में पुरुषार्थ-चतुष्टय और वर्तमान समाज में उसका महत्व

Authors

  • डॉ. विश्वजित् बर्मन

Abstract

भारतीय जीवनदर्शन में पुरुषार्थ-चतुष्टय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष मानव जीवन के चार मूल लक्ष्य हैं। धर्म जीवन को नैतिक शिक्षा और सामाजिक दिशा देता है, अर्थ भौतिक स्थिरता और समाज में न्याय सुनिश्चित करता है, काम इच्छाओं और सृजनात्मकता के माध्यम से मानसिक और भावनात्मक सन्तुलन प्रदान करता है एवं मोक्ष जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है, जो आत्मबोध और आन्तरिक शान्ति की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। प्राचीन ग्रन्थों में इन चारों पुरुषार्थों का सन्तुलित आचरण व्यक्तिगत कल्याण के अतिरिक्त सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक सुदृढ़ता के लिए किया गया है। वर्तमान में समाज में व्यप्त भोगवाद, नैतिक अधोपतन, स्वार्थपरता जैसी समस्याएँ व्यक्ति को मानसिक रूप से अशान्त एवं नीरस बना रहे है। ऐसे में भारतीय जीवन दर्शन आधारित पुरुषार्थ-चतुष्टय जीवन को नैतिक, भौतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सन्तुलित और उद्देश्यपूर्ण बना सकता है। इसका आचरण व्यक्ति और समाज दोनों में सार्वक विकास और सामग्रिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है। अतः यह केवल प्राचीन जीवन दर्शन का सिद्धान्त नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन में भी मानवता, न्याय, सृजनशीलता और शान्ति का मार्गदर्शक है।

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Published

2016-2024

How to Cite

डॉ. विश्वजित् बर्मन. (2025). भारतीय जीवनदर्शन में पुरुषार्थ-चतुष्टय और वर्तमान समाज में उसका महत्व. Sampreshan, ISSN:2347-2979 UGC CARE Group 1, 15(4), 95–108. Retrieved from https://www.sampreshan.info/index.php/journals/article/view/444

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